मैं वहाँ नहीं हूँ



सहर का इंतज़ार करते हुए पूरी रात काटनी पड़ती है.

इंतज़ार का मुंतज़िर हुआ तो जाए लेकिन उम्मीद का कोई छोटा दीया भी पास जलता रहना चाहिए.
मैंने नज़्मों से कहा कि वे मेरे पास चली आएँ, अपने शेरों की बेरोजगारी पर रोता रहा और सोचता रहा कि
सहर होगी.

सहर, जो जय को मिल गयी, सहर जो असद के पीछे पीछे कलकत्ते भी चली जाती, सहर जिसकी क़ब्र पर असद नौहे लिखने वाला था, सहर, जो मेरी तरह बिना दरवाजे वाली दीवारों की तरफ़ तरस खा कर चली जाती.

कोई नज़्म, कोई अफ़साना, कोई मतला - सब सहर से ही तो शुरू होता है- नाम ही सहर. मुझसे एक भीड़ ने एक बात कही. एक पेड़ की कट चुकी दम तोड़ती डाल ने भी वही बात कही. मैंने जिससे भी प्यार का ढोंग किया उन्होंने भी वही बात, वही बेकार सी बात, जो बोल देने का कोई मतलब नहीं बनता, बार बार मुझसे कही.

मुझे सहर का इंतज़ार करना चाहिए, मैं शुरू से जानता था. जब मैने पहले सफ़हे भरे, उसी दिन से. लेकिन सफ़हा दीये का दुश्मन था. जंग में बेदिली जान से हाथ धोने पर मजबूर कर सकती है.

और फिर शोर से दूर हटकर उसी बिना दरवाज़े की दीवार की ओट में -

मैं ग्रामोफ़ोन ख़रीद सकता हूँ लेकिन रिकार्ड के पैसे नहीं हैं. मेरे पास पुराना टेपरिकार्डर है लेकिन कैसेट नहीं हैं. मैं चाहता हूँ कि मैं और मेरा दोस्त एक जगह काम करें और यह हो नहीं पा रहा.

"तो मैं आज की रात रोता रहा
जैसे इससे पहले की रातों को
और कम से कम अवसाद मेरे साथ रहा,

.......


नहीं मैं उसका नहीं हूँ
मैं किसी का नहीं हूँ
वह मुझसे छूट गयी फ़रिश्ता है
पर उसने मुझे रोते हुए नहीं सुना "

- रॉबर्ट ज़िमरमैन (मैं वहाँ नहीं हूँ) 

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