A Prayer for the Lonely and the lost on the last day of Muharram


A Prayer for the Lonely and the lost on the last day of Muharram 


The period of mourning gets over Hussain 

The pain stays in the heart forever Hussain 


I travel alone in the desert of time, waiting 

For you. When will this torture be over Hussain?


Old age turns adolescence in a far-off Dream 

It is tough to get through life all sober, Hussain 


Alienated is the road of one’s truth, lonely is 

The traveller, with you, I will persevere, Hussain  


I want you. For that, I have to sacrifice you. 

Give me Happiness, be my prayer, Hussain 


Give her courage and be her guide. She who 

Loves you and is you. Fate isn’t fair Hussain 


‘Ali’ knows not what he yearns for and runs 

From what he yearns, Bring him closure Hussain. 



Ali. 






उपत्यकाओं का विस्तार वही है - मोहन राकेश, मणि कौल और कालिदास की मल्लिका (कुछ नोट्स)


आगही गर नहीं, गफ़लत ही सही. 
कई सारे ख़्याल मन में आते हैं. 
नाटक एक रात में बीत गया इसीलिए फ़िल्म दो हफ़्ते तक देखता रहा. 
कई बातें मन में चलती हैं, कई नींदें सोता हूँ और कई कई बार जागता हूँ हर रात. 
स्थापत्य और भटक के बीच जितने अंतरद्वन्द हैं उनसे मुक्ति किसी परिस्थिति में नहीं दिखती. 
मुझको ऐंटिसिपेशन की बीमारी है. कवियों को नहीं होनी चाहिए. हो सके तो कवि ही नहीं होना चाहिए. 
हाँ, सत्य है यक्ष, हम बस समय पकाते हैं.





मल्लिका मल्लिका क्यों है?
क्योंकि मल्लिका तीन लोग लिख रहे हैं. 
क्योंकि मल्लिका कम से कम तीन बार लिखा हुआ महाकाव्य है. 
क्योंकि कवि कविता से जीत जाए, कवि को कैसे मंज़ूर होगा 
क्योंकि कवि से पहली माँग कविता को होती है.


 कवि सिर्फ़ ख़ुद को देखता है. सम्भवत: कवि होने का मतलब यही है. 
क्या यह सच नहीं कि मल्लिका का देखना सिर्फ़ कालिदास भर को सेलिब्रेट करना है!
लेकिन जैसा कविता वैसे प्रेम, वहाँ सब हारने की कोशिश करते हैं, सत्ता से भागने की कोशिश. 
उद्दात कितना है यह पता नहीं, अतिशयोक्ति है, अनर्थक है. सत्य है.  




प्रतीक्षा से ऊब होती है. 
निराशा धीरे धीरे सब को अपना अन्न बना लेती है. 
विरोधाभासों के सामने धैर्य चाहिए होता है. 
उसके बिना कविता कैसे होती है मैं नहीं जानता - कालिदास को मल्लिका को छोड़ कर नहीं जाना चाहिए था.
फिर कालिदास कालिदास कैसे होते. बिना मल्लिका के भी कालिदास कैसे होते.दो विपरीत एक जीवन में एक साथ नहीं मिलते और दोनों अगर आधे आधे भी मिलते हैं तो भी अवसाद कहाँ साथ छोड़ता है. 

कुछ पूरा नहीं मिलता. सब खंडित. 
हर वक़्त आप जो चाहते हैं उससे एक कदम पीछे होते हैं. 
वही चाहिए होता है जो पहुँच में नहीं होता. 
बिना चाहे, अपने सीने से लगाए एक आह भर चाह को लेकर जिए जाने में जो धैर्य लगता है 
जो स्व-निष्कासन लगता है, उससे मैं डरता हूँ. भागना चाहता हूँ.


कोरे पन्नों से लिखा एक पूरा महाकाव्य. सर्वोत्तम. 
अगर कुछ लिखा हुआ, एक जीवन के बदले कईयों को सदियों तक जीवन देता रहे तो एक जीवन का शोक नहीं करना चाहिए.
जैसे बिना अभाव के कविता सम्भव नहीं, अभाव बाँट सकने वाले उस एक से उस अभाव को बाँटे बिना कविता के होने का प्रयोजन सम्पूर्ण नहीं होता. फिर भी.
स्वपन हो सकता है एक, है ना मल्लिका?



"लोग सोचते हैं मैंने उस जीवन और वातावरण में रह कर बहुत कुछ लिखा है। परंतु मैं जानता हूँ कि मैंने वहाँ रह कर कुछ नहीं लिखा। जो कुछ लिखा है वह यहाँ के जीवन का ही संचय था। 'कुमार संभव' की पृष्ठभूमि यह हिमालय है और तपस्विनी उमा तुम हो। 'मेघदूत' के यक्ष की पीड़ा मेरी पीड़ा है और विरहविमर्दिता यक्षिणी तुम हो - यद्यपि मैंने स्वयं यहाँ होने और तुम्हें नगर में देखने की कल्पना की। 'अभिज्ञान शाकुंतलम' में शकुंतला के रूप में तुम्हीं मेरे सामने थीं। मैंने जब-जब लिखने का प्रयत्न किया तुम्हारे और अपने जीवन के इतिहास को फिर-फिर दोहराया। और जब उससे हट कर लिखना चाहा, तो रचना प्राणवान नहीं हुई। 'रघुवंश' में अज का विलाप मेरी ही वेदना की अभिव्यक्ति है और....

मल्लिका दोनों हाथों में मुँह छिपा लेती है। कालिदास सहसा बोलते-बोलते रुक जाता है और क्षण-भर उसकी ओर देखता रहता है. 

चाहता था, तुम यह सब पढ़ पातीं, परंतु सूत्र कुछ इस रूप में टूटा था कि...

मल्लिका मुँह से हाथ हटा कर नकारात्मक भाव से सिर हिलाती है. 

मल्लिका : वह सूत्र कभी नहीं टूटा. " 

 

एक क़ुबूलनामा-चेस्लाव मीलोष



(तस्वीर पोयट्री फ़ाउंडेशन से साभार)




एक क़ुबूलनामा 

चेस्लाव मीलोष  (1985)


मेरे ईश्वर, मुझे स्ट्रॉबेरी जैम बहुत पसंद है 

और एक औरत की देह का घुप मीठापन.


ठीक से ठंडी की हुई वोदका, ज़ैतून के तेल में 

पकी हुई हिलसा मछली, लौंग, हींग की गंध. 


तो मैं कैसा फ़क़ीर हूँ? क्

यों मुझ पर दैवी कृपा हुई है?

कई लोगों को ईश्वरत्व मिला, वे भरोसे लायक थे.

मुझ पर किसने भरोसा किया? 


वे तो देख रहे थे ना,

किस तरह मैं ग्लास ख़ाली करता हूँ, 

किस तरह खाना जीमता हूँ और 

लार टपकता हुआ वेट्रेस की गर्दन की तरफ़ देखता हूँ. 


कमियों से भरा हुआ हूँ. जानता हूँ. 

महानता की इच्छा करना , कहीं भी 

महानता को पहचान सकना - पूरी तरह से नहीं,

टुकड़ों में ही सही लेकिन किसी भविष्यवक्ता की तरह मैं 

जानता हूँ मेरे जैसे छोटे लोगों के लिए क्या बचा है. 


छोटी उम्मीदों की एक दावत, गर्वीलों की एक रैली,

कूबड़ों का एक टूर्नामेंट, साहित्य. 


अनुवाद - अंचित. 


(मिवोश की यह कविता बहुत प्रिय है क्योंकि यह अपनी कमियों की स्वीकृति है. शुचिता, कविता की पहली माँग है और ईमानदारी भी. )

सपना/चाह लूईज़ ग्लिक

(तस्वीर पोयट्री फ़ाउंडेशन से साभार)


सपना/चाह 

लूईज़ ग्लिक 


मैं तुम्हें कुछ बताती हूँ: रोज़ 

लोग मर रहे हैं. और यह तो बस शुरुआत है. 


हर दिन, मातम-घरों में नयी विधवाएँ पैदा होती हैं, 

नए अनाथ पैदा होते हैं. 


अपनी बाहें मोड़े, बैठे हुए, 

ये कोशिश करते हैं कि तय करें 

कि आगे नयी ज़िंदगी में क्या करना है. 


फिर वह क़ब्रिस्तान जाते हैं. कुछ तो पहली बार.

कई बार रोने से डरे हुए, कई बार ना रोने से डरे हुए. 

कोई झुकता है, उन्हें बताता है आगे क्या करना है. 

कई बार इसका मतलब कुछ कहना होता है,

कई बार खुली कब्र में मिट्टी डालना. 


और इसके बाद, सब घर की तरफ़ लौट जाते हैं,

जो अचानक मेहमानों से भर जाता है. 

विधवा, सोफ़े पर बैठती है, राजसी लगती हुई,

और लोग पंक्तियों में उसके पास जाते हैं.

कई बार उसका हाथ थामते हैं, कई बार गले लगाते हैं. 

वह हमेशा कुछ ना कुछ खोज लेती है, सबसे कहने के लिए,

उनका शुक्रिया करती है, आने के लिए शुक्रिया. 


और अपने दिल में वह चाहती हैं, वे सब चले जाएँ.

वह क़ब्रिस्तान में वापस जाना चाहती है, बीमारों के कमरे में 

वापस, अस्पताल में वापस. वह जानती है, यह सम्भव नहीं.

लेकिन यही उम्मीद उसके पास है, यही वापसी की इच्छा, 

शादी जितना पीछे नहीं, पहले चुम्बन जितना पीछे नहीं. 



अनुवाद: अंचित 

(कविता का शीर्षक अंग्रेज़ी में Fantasy है. दो शीर्षकों के बीच फँसा हुआ हूँ. यह कविता अंग्रेज़ी में इरफ़ान खान की पत्नी ने उनकी कब्र की तस्वीर के साथ इंस्टाग्राम पर शेयर की थी.)