Dear Beloved





Dear Beloved


Vagabond nights once led to lovemaking with the mystery, beloved,

yearning to last eternally, it fades that was once glittery beloved. 


Ghazals bloomed with the moon - the sipping of a forever ecstasy, 

In such dim-lit nights, you plucked me slowly from my history beloved. 


Your skin, heart, taste, and smell - the world remains 

in anxious waiting. my body has become a cemetery, beloved. 


Rulers steal images belonging to lovers, the Badshah 

Plays with peacocks.what to make of this adultery beloved. 


Students committing suicide, people are being jailed

without crimes. Shayars have surrendered to flattery beloved. 


“Ali” is lost to you and wanders in this desert filled with  

Mirages and serpents. wine is your intoxicating memory, beloved. 



                                                            Ali 

अस्वीकार और अधूरेपन के बीच : कार्गो - कुछ नोट्स



"हम सब के दिल में एक गाँठ होती है  जो हम चाहते हैं सुलझ जाए।"
                   - माइकल ऊंदजाते 


- कभी कभी अकेलापन जो होता है वह एक कवच की तरह होता है, अकेले ही जी पाना जैसे महसूसने से ऊपर उठ जाना। प्रहस्त इसके बारे में बहुत सोचता है। वह बहुत सालों से दूर है बहुत, इतनी दूर कि दूरी ही उसकी ताक़त बन गयी है। उसने खूद को एक रूटीन में ढाल लिया है। बहुत कुछ दिमाग़ के भीतर ब्लॉक कर दिया है। और अपने काम में जी लगा रहा है। वैसे ही जैसे जॉर्डन वीडियो गेम में नई दुनिया खोज रहा है, डी नीरो टैक्सी चला रहा है, व्लाडमीर और एस्ट्रागोन इंतज़ार में हैं और टायरसीयस बिना किसी वजह के सब देखे चला जा रहा है। हम कौन हैं? हम क्यों जीते हैं? आख़िर जीवन का ध्येय क्या है, किन परिपेक्ष्यों में जीवन का अर्थ बनता है। एक तरह की असंगति है जो पूरी फ़िल्म में आपके साथ चलती रहेगी। यहाँ ये बता देना चाहिए कि प्रहस्त "होमो राक्षस" है और मृत्यु के बाद "आत्माओं" के सफल ट्रैंज़िशन का काम देखता है।

- अडॉर्नो एक लेख में कहते हैं कि कल्चर इंडस्ट्री जिसका वादा करती है वही चीज़ नहीं देती। पूँजीवाद के घेरे के भीतर, असंगति की बात करते हुए (यह मानते हुए और जानते हुए कि असंगति जो है पूँजीवाद की सबसे काबिल संतानों में से एक है), यह भी लगता है कि जीवन का स्वरूप ऐसा ही होना है। 75 साल से एक ही काम करते हुए प्रहस्त एक दिन पाता है कि उसके "कस्टमर" अब दोहराने लगे हैं। एक ऐसा विशियस सर्कल जहाँ अर्थ भी अपनी संगति खो चुका है। इस स्थिति में आप क्या करेंगे। 

- यह एक ग्लूमि दुनिया है। सारे मॉरल सिस्टम्स पुराने हो चुके। बेवक़ूफ़ी की हद तक। मासूमियत का ऐसी दुनिया में आप क्या करेंगे। जोश का क्या करेंगे। जज़्बे का क्या करेंगे। इतना वृद्ध हो गया है समय कि चलते हुए उसके घुटने दुखते हैं। कार्गो वह बोझ है जो सिसिफ़स की तरह आप और हम उठाए हुए हैं।क्या प्रहस्त के रिटायर होने से वह बोझ वहाँ से ख़त्म हो जाएगा। क्या हम अपनी स्मृतियों से उबर जाएँगे - विस्मृति भी खोज ली होती हमने लेकिन तब बुरे के साथ अच्छा भी खो जाता है- हम मोह से ऊपर कैसे उठेंगे?

- कई सवाल हैं। और कभी कमजोर होती, कभी अधूरी लगती यह फ़िल्म बार बार यह सवाल पूछती है।   अगर जेंडर से अलग देखें (हालंकि युविष्का के महिला होने से सम्बंधित सारे सवाल जायज़ रहेंगे और उनको भी पूछना ज़रूरी है) और यह पूछें कि युविष्का क्यों हैं फ़िल्म में तो मुझको लगता है जिस तरह बेकेट के लिए ज़रूरी है कि व्लाडमीर और एस्ट्रागोन दोनों रहें, यहाँ भी वही बात है। आप कोई भी रास्ता लेंगे, आप वहीं पहुँचेंगे, आप ख़ुश हों या उदास आप पर भार तारी हो ही जाएगा। यही सम्भवत: सच है। 

अस्तित्व का सवाल, और जो कुछ पिछले एक साल में घटा है दुनिया में , इस फ़िल्म को और महत्वपूर्ण बना रहा है, ये कहने की बात नहीं है। 

अंत में यह फ़िल्म साइयन्स फ़िक्शन है और शायद हॉल में लगती नहीं। लेकिन सभी असाधारण फ़िल्मों को भारत में यही हासिल होता है। मुझको कविताएँ ज़्यादा याद आती हैं, फ़िल्में देखते हुए भी। और लॉंगिंग जिसका अनुवाद लालसा भी है और तड़प भी, दोनों अर्थ सुंदर कविताओं में एक साथ सच होते हैं। शेली की एक कविता से कुछ पंक्तियाँ याद आयीं - 

"हम बीता हुआ और आने वाला देखते हैं 
और उसके लिए तड़पते हैं जो नहीं है। 
हमारी सबसे ईमानदार हँसी में थोड़ा सा दर्द 
मिला  होता है, 
हमारे सबसे मीठे गीत वही होते हैं 
जो हमारे सबसे उदास विचारों से गढ़े होते हैं।" 

कि जीवन यही है, यही स्वीकार करना अवसाद से जीतना है।