(तस्वीर पोयट्री फ़ाउंडेशन से साभार) |
सपना/चाह
लूईज़ ग्लिक
मैं तुम्हें कुछ बताती हूँ: रोज़
लोग मर रहे हैं. और यह तो बस शुरुआत है.
हर दिन, मातम-घरों में नयी विधवाएँ पैदा होती हैं,
नए अनाथ पैदा होते हैं.
अपनी बाहें मोड़े, बैठे हुए,
ये कोशिश करते हैं कि तय करें
कि आगे नयी ज़िंदगी में क्या करना है.
फिर वह क़ब्रिस्तान जाते हैं. कुछ तो पहली बार.
कई बार रोने से डरे हुए, कई बार ना रोने से डरे हुए.
कोई झुकता है, उन्हें बताता है आगे क्या करना है.
कई बार इसका मतलब कुछ कहना होता है,
कई बार खुली कब्र में मिट्टी डालना.
और इसके बाद, सब घर की तरफ़ लौट जाते हैं,
जो अचानक मेहमानों से भर जाता है.
विधवा, सोफ़े पर बैठती है, राजसी लगती हुई,
और लोग पंक्तियों में उसके पास जाते हैं.
कई बार उसका हाथ थामते हैं, कई बार गले लगाते हैं.
वह हमेशा कुछ ना कुछ खोज लेती है, सबसे कहने के लिए,
उनका शुक्रिया करती है, आने के लिए शुक्रिया.
और अपने दिल में वह चाहती हैं, वे सब चले जाएँ.
वह क़ब्रिस्तान में वापस जाना चाहती है, बीमारों के कमरे में
वापस, अस्पताल में वापस. वह जानती है, यह सम्भव नहीं.
लेकिन यही उम्मीद उसके पास है, यही वापसी की इच्छा,
शादी जितना पीछे नहीं, पहले चुम्बन जितना पीछे नहीं.
अनुवाद: अंचित
(कविता का शीर्षक अंग्रेज़ी में Fantasy है. दो शीर्षकों के बीच फँसा हुआ हूँ. यह कविता अंग्रेज़ी में इरफ़ान खान की पत्नी ने उनकी कब्र की तस्वीर के साथ इंस्टाग्राम पर शेयर की थी.)
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