सफ़रगोई : पटना - जो यात्राओं का उद्गम है और अंत भी.



पटना - जो यात्राओं का उद्गम है और अंत भी. 


मैंने कहा था ना आपसे कि हर कहानी के अंत में आपको सफ़र पर निकलना पड़ता है. आप अपना शहर छोड़ते हैं और नई कहानी शुरू होते ही अगले शहर की तरफ़ बढ़ जाते हैं. एक ही शहर में कई कई शहर होते हैं, एक ही सड़क हर बार एक नयी सड़क होती है. एक शहर आपके भीतर बसना है और हर सफ़र में, आप सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी शहर के बारे में सोचते हैं. 

सन ग्यारह की शुरुआती सर्दियाँ थीं. किसी को अलविदा कह कर, किसी की यादें लिए, खंडहरों में एक सहर छोड़ कर, यह सोचते हुए कि मैं शहरों से दूर रहूँगा, यात्राओं से दूर रहूँगा, मैं पटना की ओर निकल गया था. 


पटना यानी पाटलिपुत्र, पटना यानी अज़ीमाबाद, पटना यानी गंगा के किनारे, थोड़ा सोता, थोड़ा जागता, अपनी रफ़्तार से भागता हुआ शहर. लेकिन मैं और आप हमेशा एक ही शहर में थोड़े होते हैं. बहुत पहले जब इंसान ने गुफा की दीवार पर 

वे परछाइयाँ देखीं थीं तो सबको अलग अलग परछाइयाँ दिखाई दी थीं. तो एक ही यात्रा पर होते हुए, एक ही बस में बैठे हुए, एक ही मंज़िल की ओर बढ़ते हुए, हमारे सफ़र अलग अलग होते हैं, कह देता हूँ, कि आपकी सारी यात्राएँ सिर्फ़ आपकी हैं. आप अकेले ही हैं, और यही आपका सम्बल भी बनेगा, और आपकी हताशा भी. 


ट्रैवल वाली बुक्लेट्स और वेबसाइटें आपको घूमने वाली जगहों की लिस्ट दे देंगी. लेकिन उनके सहारे घूमना ऐसा ही है जैसे किसी और की रूचि से खाना, किसी और के कपड़े पहन लेना और किसी और के अनुभव जीना. वहाँ आपको अपना शहर नहीं मिलेगा. पटना आने पर सबसे पहले, सबसे पहले ज़रूरी है कि आप गंगा किनारे जाएँ. उन भीड़भाड़ वाले सुने सुनाए घाटों पर नहीं. एक सुनसान घाट खोजिए. डर लगेगा शायद नदी बहुत दूर भी दिखाई दे, कुछ अचरज भरा नहीं लेकिन वहाँ की शांति को सुनिए, उग आए मशीनी लगते कंक्रीट के जंगलों, रिवरफ़्रंट को ख़राब कर रहे पुल से पार देखिए, वहाँ इतिहास की ध्वनि आपका इंतज़ार करती है. सदियों से कवि यहीं आसरा पाते रहे हैं. यहीं वह जगहें हैं जहाँ से जहाज़ों में भर कर गिरमिटिए पहले कलकत्ता ले जाए गए और फिर दुनिया भर में. रेशम यहीं से फैलता रहा दुनिया भर में, यहीं अफ़ीम के समंदर लाए गए, यही वे घाट हैं जहाँ से अशोक ने महेंद्र को बुद्ध के साथ गंगा रवाना किया था. इतिहास है. शमशान के पास जैसे बच्चों की लाशें  मिट्टी में दबी हुई हैं वैसे ही. सन ग्यारह में इन्हीं शहर किनारे धूप पर पसरे हुए घाटों में से एक पर मैं बुद्ध से मिला. उस दिन उसने सस्ती सिगार पीने का मन बनाया था और एक बच्चे की पानी पर दहती हुई लाश देख कर देर तक रोती रही थी. 


चाह कर भी, अगर बदा है तो आप यात्राओं से अपना पीछा नहीं छुड़ा सकते. इससे लड़ना बंद कर देना चाहिए. खानाबदोशी उम्र की नहीं, क़िस्मत की बात है. भटकना आप चुनते नहीं. बहुत दूर से ऐसे ही एक शायर खुदा को खोजता पटना आया था. वह पटना की गलियों में भटकता रहा. यहाँ के सस्ते होटलों में खाता रहा, यहाँ मिलने वाला सस्ता नशा करता रहा. कोई कहता नहीं लेकिन ख़ुद देखिए और मानिए कि पटना गलियों का शहर है इसीलिए इन्हीं गलियों में भटकते हुए ग़ाँधी मैदान पहुँचिए और वहाँ घास पर सो कर आसमान देखिए. बग़ल में गोलघर है, और इस शायर ने इसपर कविताएँ लिखी हैं, उन्हें खोजिए और पढ़ जाइए. हालाँकि  बहुत किताब की दुकानें नहीं शहर में, ऐसी एक भी नहीं जहाँ  बैठ कर कुछ देर पढ़ सकें, या खाते हुए. पुराना और नया अलग थलग है और एक लम्बा राजपथ दोनों को जोड़ता है. राजाओं की माफ़िक़ उसपर चलिए मानों आपने तय किया हो कि आप कमिश्नर बनेंगे और ग़ाँधी भी. आपकी ज़िंदगी की कई शामों को इसी शहर की हवा से भरना है. सब छूट जाने के पहले. 


खाने के लिए पुराने ठिकाने खोजिए, नयी दुकानें कुछ नया नहीं बेचतीं. स्टेशन के पास लिट्टी खाइए और  सब्ज़ीबाग़ के रहमानिया में रुमाली रोटी और गोश्त. सेव-बुंदिया खाने बेली रोड जाइए, चाय पीने हथुआ मार्केट के पास डिंग डांग. समोसे पटना साहिब के आगे टंडन के यहाँ खाइए , चाट भी उसी के पास, लस्सी हरमंदिर साहिब के आगे. पुराने शहर की ओर मुड़े हैं तो पटना साहिब जाइए, कंगन घाट जाइए. नए म्यूज़ियम जाना बहुत ज़रूरी नहीं. बौद्ध स्तूप जाना भी. पार्कों से बचिए. ऑटो की सवारी करिए, शहर की भीड़ के साथ जाम में धक्कम-पेल करिए.


सफ़र का मतलब मंज़िलों तक पहुँचना नहीं होता. उनकी अहमियत चलने से मापी जाती है. और यह तय है कि आप अकेले नहीं हैं कभी भी - या तो कोई है या किसी की स्मृति है. सन ग्यारह में पटना की ओर निकलते हुए, मैं जाने क्या पीछे छोड़ रहा था. इतनी उम्र हो गयी थी कि देह पर नक़्शे खुदने लगे थे. उन्हीं सर्दियों में मैं पटना में बुद्ध से मिला और मुझे लगा कि अब मुझे यात्राओं से मूंह फेर लेना चाहिए. इसी विचार से फिर एक नयी यात्रा शुरू होनी थी, यह समझ आना था कि खानाबदोशी के लिए पहली ज़रूरत घर बसाने की ख्वाहिश होती है. 

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